व्याकरण
!!!—: अथ शब्दानुशासनम् :—!!!
(१.) अइउण्।
(२.) ऋलृक्।
(३.) एओङ्।
(४.) ऐऔच्।
(५.) हयवरट्।
(६.) लण्।
(७.) ञमङणनम्।
(८.) झभञ्।
(९.) घढधष्।
(१०.) जबगडदश्।
(११.) खफछठथचटतव्।
(१२.) कपय्।
(१३.) शषसर्।
(१४.) हल् ।
इति प्रत्याहार-सूत्राणि
इन सूत्रों से प्रत्याहार तो सैकडों बन सकते हैं, किन्तु पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में केवल ४१ प्रत्याहारों का ही व्यवहार किया है ।
इसके अतिरिक्त एक उणादिसूत्र में “ञमन्ताड्डः” (उणादिसूत्र—१.११४) से ञम् प्रत्याहार तथा एक “चय्” प्रत्याहार “चयो द्वितीयः शरि पौष्करसादेः” (वार्तिक–८.४.४७) इस वार्तिक से बनेगा ।
इन दोनों को मिलाकर कुल ४३ प्रत्याहार हुए ।
प्रत्याहार दो प्रकार से बनाए जाते हैं । आदि अक्षर से और अन्तिम अक्षर से भी ।
सबसे पहले अन्तिम अक्षर से सूत्रानुसार बनाते हैं —
(१.) प्रथम सूत्र है—अइउण् । इस सूत्र में अन्तिम अक्षर है–ण् । इसे आदि अक्षर अ से एक प्रत्याहार बनेगा–अण् ।
इससे एक प्रत्याहार बनेगाः–“अण्” । इस प्रत्याहार का उपयोग “उरण् रपरः” (१.१.५०) में होता है ।
इस अण् प्रत्याहार में तीन वर्ण सम्मिलित है–अइउ । अण् कहने से इन तीनों वर्णों का ग्रहण होगा । इसी प्रकार अन्य प्रत्याहार में भी जानें ।
(२.) ऋलृक्—इस सूत्र से तीन प्रत्याहार बनेंगे—
(क) अक्—“अकः सवर्णे दीर्घः” (६.१.९७) ।
(ख) इक्—“इको गुणवृद्धी” (१.१.३)
(ग) उक्—“उगितश्च” (४.१.६)
उक् प्रत्याहार में उ, ऋ, लृ ये तीन वर्ण ग्रहण होंगे ।
(३.) एओङ्—इस सूत्र से केवल एक प्रत्याहार बनेगा—“एङ्” । “एङि पररूपम्” (६.१.९१)
(४.) ऐऔच्—इस सूत्र से चार प्रत्याहार बनेंगेः—
(क) अच्—“अचान्त्यादि टि” (१.१.६३)
(ख) इच्—“इच एकाचोम्प्रत्ययवच्च” (६.३.६६)
(ग) एच्—“एचोयवायावः” (६.१.७५)
(घ) ऐच्—“वृद्धिरादैच्” (१.१.१)
अच् प्रत्याहार में अ से लेकर च् तक के सभी वर्ण ग्रहण होंगे । इसमें कुल ९ वर्ण हैं, जो सभी स्वर हैं–अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ
प्रत्याहार का यही लाभ है कि इन्हें बार बार नहीं गिनना पडता । बस केवल अच् कह दो, सभी स्वर वर्ण गृहीत हो जाएँगे ।
(५.) हयवरट्—इस सूत्र से केवल एक ही प्रत्याहार बनेगा–“अट्” । “शश्छोSटि” (८.४.६२)
(6.) लण्—इस सूत्र से तीन प्रत्याहार बनेंगे—-
(क) अण्—“अणुदित्सवर्णस्य चाप्रत्ययः” (१.१.६८)
(ख) इण्—“इण्कोः” (८.३.५७)
(ग) यण्—“इको यणचि” (६.१.७४)
(७.) ञमङणनम्—इस सूत्र से चार प्रत्याहार बनेंगेः—
(क) अम्—“पुमः खय्यम्परे” (८.३.६)
(ख) यम्–“हलो यमां यमि लोपः” (८.४.६३)
(ग) ङम्—“ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्” (८.३.३२)
(घ) ञम्—“ञमान्ताड्डः” (उणादिसूत्र–१.११४)
(८.) झभञ्–इस सूत्र से केवल एक प्रत्याहार बनेगा—“यञ्” ।
“अतो दीर्घो यञि” (७.३.१०१)
(९.) घढधष्—इससे दो प्रत्याहार बनेंगे—झष् और भष् ।
“एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः” (८.२.३७)
(१०.) जबगडदश्—इस सूत्र से कुल ६ प्रत्याहार बनेंगे—
(क) अश्—“भोभगोSघो अपूर्वस्य योSशि” (८.३.१७)
(ख) हश्—“हशि च” (६.१.११०)
(ग) वश्—“नेड् वशि कृति” (७.२.८)
(घ) झश् और (ङ) जश्—“झलां जश् झशि” (८.४.५२)
(च) बश्—“एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः” (८.२.३७)
(११.) खफछठथचटतव्—इससे केवल एक प्रत्याहार बनेगा—“छव्”।
“नश्छव्यप्रशान्” (८.३.७)
(१२.) कपय्—इससे ५ प्रत्याहार बनेंगे—
(क) यय्—“अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः” (८.४.५७)
(ख) मय्—“मय उञो वो वा” (८.३.३३)
(ग) झय्—“झयो होSन्यतरस्याम्” (८.४.६१)
(घ) खय्—“पुमः खय्यम्परे” (८.३.६)
(ङ) चय्—“चयो द्वितीयः शरि पौष्करसादेः” (वार्तिक–८.४.४७)
(१३.) शषसर्—इस सूत्र से ५ प्रत्याहार बनेंगेः—
(क) यर्—“यरोSनुनासिकेSनुनासिको वा” (८.४.४४)
(ख) झर्–“झरो झरि सवर्णे” (८.४.६४)
(ग) खर्—“खरि च” (८.४.५४)
(घ) चर्–“अभ्यासे चर्च” (८.४.५३)
(ङ) शर्–“वा शरि” (८.३.३६)
(१४.) हल्—इस सूत्र से ६ प्रत्याहार बनेंगेः—
(क) अल्—अलोSन्त्यात् पूर्व उपधा” (१.१.६४)
“अल्” प्रत्याहार में प्रारम्भिक अ वर्ण और अन्तिम वर्ण ल् से “अल्” प्रत्याहार बनता है । अल् कहने से सभी वर्ण गृहीत होंगे ।
(ख) हल्—“हलोSनन्तराः संयोगः” (१.१.७)
हल् प्रत्याहार में “हयवरट्” के “ह” से लेकर “हल्” के “ल्” तक सभी वर्ण गृहीत होंगे । “हल्” प्रत्याहार में सभी व्यञ्जन वर्ण आ जाते हैं ।
(ग) वल्—“लोपो व्योर्वलि” (६.१.६४)
(घ) रल्—“रलो व्युपधाद्धलादेः संश्च” (१.२.२६)
(ङ) झल्—“झलो झलि” (८.२.२६)
(च) शल्—“शल इगुपधादनिटः क्सः” (३.१.५४)
इस प्रकार कुल ४३ प्रत्याहार अन्तिम वर्ण से बनाए गए ।
अब हम आदि वर्ण से भी ये ४३ प्रत्याहार बनाकर दिखायेंगे । यहाँ केवल प्रत्याहार के नाम दिखा रहे हैं । सूत्र ऊपर निर्दिष्ट हैं । वहाँ से देख लें ।
(१.) अकार वर्ण से ८ प्रत्याहार बनेंगेः–अण्, अक्, अच्, अट्, अण्, अम्, अश्, अल् ।
(२.) इकार से तीन प्रत्याहार बनते हैंः—इक्, इच्, इण् ।
(३.) उकार से एकः—उक् ।
(४.) एकार से दे—एङ् , एच् ।
(५.) ऐकार से एक—ऐच् ।
(६.) हकार से दो—हश्, हल् ।
(७.) यकार से पाँच—यण्, यम्, यञ्, यय्, यर् ।
(८.) वकार से दो—वश्, वल् ।
(९.) रेफ से एक—रल् ।
(१०.) मकार से एक—मय् ।
(११.) ङकार से एक—ङम् ।
(१२.) झकार से पाँच—झष्, झश्, झय्, झर्, झल् ।
(१३.) भकार से एक—भष् ।
(१४.) जकार से एक–जश् ।
(१५.) बकार से एक— बश् ।
(१६.) छकार से एक—छव् ।
(१७.) खकार से दो—खय्, खर् ।
(१८.) चकार से एक—चर् ।
(१९.) शकार से दो—-शर्, शल् ।
ये कुल ४१ प्रत्याहार हुए और ऊपर दो अन्य प्रत्याहार भी बताएँ हैं । इस प्रकार कुल ४३ प्रत्याहार अष्टाध्यायी में उपयोग के लिए बनाए गए हैं ।
साभार वैदिक संस्कृत।