श्रावण मास
यह महीना भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय हैं, पूरे माह धार्मिक रीति-रिवाजों का ताता लगा रहता हैं | कई विशेष त्यौहार श्रावण के इस महीने में मनाये जाते हैं | हमारे देश की परम्परायें हमें हमेशा ईश्वर से जोड़ती हैं, फिर उसमें एक दिन का त्यौहार हो या महीने भर का जश्न | सभी का अपना एक महत्व हैं, यहाँ ऋतुओं को भी पूजा जाता हैं, उनका आभार अपने तरीके से व्यक्त किया जाता हैं |
वर्षा ऋतू से ही चार महीने के त्यौहार शुरू हो जाते हैं, जिनका पालन सभी धर्म, जाति और अपनी मान्यताओं के अनुरूप करते हैं | उसी प्रकार श्रावण का हिन्दू समाज में बहुत अधिक महत्व हैं | इसे कई विधियों एवं परम्पराओं के रूप में देखा एवं पूजा जाता हैं | हमारे देश में ऋतुओं का समान आकार हैं – मुख्य तीनों ऋतुयें 4-4 माह के लिए आती हैं, सभी का होना हमारे देश की जलवायु पर विशेष प्रभाव डालता हैं, भारत देश कृषि प्रधान होने के कारण यहाँ वर्षा ऋतू का महत्व अधिक होता हैं और उसमें श्रावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं |
सावन महीना महत्त्व
श्रावण यह हिंदी कैलेंडर में पांचवे स्थान पर आता हैं, यह वर्षा ऋतू में प्रारम्भ होता हैं | भगवान शिव जो श्रावण के मुख्य देवता कहे जाते हैं, उन्हें इस माह में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं | पूरे माह में धार्मिक उत्सव होते हैं – शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवं शिव अभिषेक का प्रमुख महत्व हैं | विशेष तौर पर श्रावण सोमवार को पूजा जाता हैं, कई महिलायें पूरा श्रावण महीना सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं | कुंवारी कन्या अच्छे सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस माह में उपवास एवं भगवान शिव की पूजा करती हैं, विवाहित स्त्री पति के लिए मंगल कामना करती हैं | भारत देश में पूरे उत्साह के साथ श्रावण महोत्सव मनाया जाता हैं.
श्रावण / सावन माह से जुडी धार्मिक कहानियाँ
कहा जाता हैं, श्रावण भगवान शिव का अतिप्रिय महीना होता हैं | इसके पीछे की मान्यता यह हैं, कि प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सति ने अपने जीवन को त्यागकर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जिया, उसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया, पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे श्रावण महीने में कठोरतप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की | अपनी भार्या से पुनः मिलाप के कारण भगवान् शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय हैं | यही कारण हैं, कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती हैं |
यही मान्यता हैं, कि श्रावण के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहाँ उनका अभिषेक कर स्वागत हुआ था, इसलिए इस माह में शिवाभिषेक का महत्व बताया गया हैं |
धार्मिक मान्यतानुसार श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमे निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया, जिस कारण उन्हें नीलकंठ का नाम मिला और इस प्रकार उन्होंने श्रृष्टि को इस विष से बचाया और सभी देवताओं ने विषाग्नि को शान्त करने के लिये उन पर जल डाला था इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान हैं |
वर्षा ऋतू के चौमासा (चारमाह) में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी श्रृष्टि भगवान शिव के आधीन हो जाती हैं, अतः चौमासा में भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मनुष्य जाति के लोग कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास आदि करती हैं |
बिल्वपत्र का महत्व –
शिवोपासना में बिल्वपत्र का विशेष महत्व हैं, कहा जाता हैं – एक डाकू (व्याध) अपने जीवन व्यापन के लिए राहगीरों को लुटता हैं | एक बार वो रात्रि के समय एक पेड़ पर बैठ कर अपने शिकार का इंतजार करता हैं, लेकिन समय बितता जाता हैं और कोई नहीं आता | तभी डाकू के हृदय में अपनी करनी को लेकर पश्चाताप का भाव उत्पन्न होता हैं और वो खुद को कोसता हुआ उस पेड़ के पत्तो को तोड़ – तोड़ कर नीचे फेकता रहता हैं | वह वृक्ष बिल्वपत्र का होता हैं और उसके नीचे शिवलिंग स्थापित होता हैं | डाकू के द्वारा फेका गया पत्ता शिवलिंग पर गिरता हैं और उसके करुण भाव के कारण उसमें एक सच्ची श्रद्धा का संचार होता हैं, जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ उसे दर्शन देते हैं और उसकी पीढ़ा को समाप्त कर उसे सही राह पर लाते हैं, इस प्रकार बिल्वपत्र का विशेष महत्व होता हैं |
श्रावण/ सावन सोमवार व्रत का महत्व –
सोमवार का स्वामी भगवान शिव को माना जाता हैं, पूरे वर्ष में सोमवार को शिवभक्ति के लिए उत्तम माना जाता हैं, अत: शिव प्रिय होने के कारण श्रावण के सोमवार का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं. श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं, जिनमे एक्श्ना अथवा पूर्ण व्रत रखा जाता हैं | एक्श्ना में संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता हैं, शिव जी की पूजा का समय प्रदोषकाल में होता हैं, कई जगहों पर श्रावण सोमवार के दिन शाला का अर्धावकाश होता हैं |
काँवर (कांवड) यात्रा का उल्लेख
श्रावण में काँवड यात्रा का बहुत अधिक महत्व हैं, इसमें लोग भगवावस्त्र धारण करके पवित्र नदियों के जल को एक काँवड में बाँधकर पैदल चलकर शिवलिंग पर उस जल को चढ़ाते हैं. काँवड एक बाँस का बना होता हैं, जिसमे दोनों तरफ छोटी सी मटकी होती हैं, जिसमे जल भरा होता हैं और उस बाँस को फूलों एवं घुन्घुरों से सजाया जाता हैं, साथ ही “बोल बम” का नारा लिए कई काँवड यात्री श्रृद्धापूर्वक पदयात्रा कर पवित्र जल को शिवलिंग पर अर्पण करते हैं. श्रावण का पुराणों में बहुत महत्व हैं, कहते हैं – रावण ने सबसे पहले काँवड यात्रा की थी एवं भगवान राम ने भी काँवडी के रूप में शिवलिंग पर जल चढ़ाया था. इस तरह से यह कार्य पुरुषों द्वारा भी किया जाता हैं. अतः श्रावण का यह महीना स्त्री एवं पुरुषों दोनों के द्वारा अपने-अपने तरीकों से मनाया जाता हैं |
भुजरियाँ का महत्व –
शुक्ल पक्ष की पञ्चमी (नाग पंचमी) के दिन से भुजरियाँ बोई जाती हैं. इसमें घर में टोकनी में मिट्टी डालकर कर गेहूँ बोते हैं, इस दिन से पूर्णिमा के दिन तक इसकी पूजा की जाती हैं. श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दूसरे दिन इस भुजरियाँ को सभी को बाँटा जाता हैं, आसपास के घरों एवं रिश्तेदारों को भुजरियाँ दी जाती हैं |
श्रावण व्रत का विवरण –
श्रावण के महीने में शिवजी के लिए व्रत रखे जाते हैं, जिनमे सोमवार का विशेष महत्व हैं, शिवजी की पूजा कैसे की जाती हैं, जाने क्रमबध्द तरीके से – सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती हैं, क्यूंकि उन्हें वरदान प्राप्त हैं कि किसी भी कार्य में सबसे पहले गणेश का आह्वान किया जाता हैं, उसके बाद शिवजी की पूजा की जाती हैं |
शिव पूजन का विवरण –
शिव पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व हैं, जिसे रुद्राभिषेक कहा जाता हैं | प्रतिदिन रुद्राभिषेक करने का नियम पालन किया जाता हैं. रुद्राभिषेक करने की विधि इस प्रकार है –
सर्वप्रथम जल से शिवलिंग को स्नान कराया जाता हैं, फिर क्रमशः दूध, दही, शहद, शुद्ध घी, शर्करा | इन पांच अमृत जिन्हें मिलाकर पंचामृत कहा जाता हैं जिसके द्वारा शिवलिंग को स्नान कराया जाता हैं, पुनः जल से स्नान कराकर उन्हें शुद्ध किया जाता हैं |
इसके बाद शिवलिंग पर चन्दन का लैप लगाया जाता हैं, तत्पश्चात जनेऊ अर्पण किया जाता हैं अर्थात् पहनाया जाता हैं |
शिव जी पर कुमकुम एवं सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता. उन्हें अबीर अर्पण किया जाता हैं |
बिल्वपत्र, अकाव के फूल, धतूरे का फूल एवं फल चढ़ायें जाते हैं. शमीपत्र का भी विशेष महत्व होता हैं, धतूरे एवं बिल्वपत्र से भी शिवजी को प्रसन्न किया जाता हैं. शमी के पत्र को स्वर्ण के तुल्य माना जाता हैं |
यह उपक्रम शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र “ॐ नम: शिवाय” मंत्र के जाप के साथ किया जाता हैं |
इसके पश्चात् माता गौरी का पूजन किया जाता हैं |
श्रावण माह एकादशी विवरण-
श्रावण के महीने में एकादशी का भी महत्व होता हैं, इस माह में दो एकादशी होती हैं जिसमें –
• पुत्रदा एकादशी : यह एकादशी शुक्लपक्ष में आती हैं |
• कामिका एकादशी : यह कृष्ण पक्ष एकादशी कही जाती हैं |
श्रावण के विशेष त्यौहार –
सावन सोमवार – सावन के महीने में जितने भी सोमवार पड़ते हैं वो सावन सोमवार होते हैं जिसमें लोग भगवान् शिव की पूजा करते हैं उपवास रहते हैं. और दिन में एक समय खाना खा कर पूरा दिन उपवास रहते हैं |
हरियाली तीज – श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज का यह त्यौहार मनाया जाता हैं. इसमें नव विवाहिता अपने घर आती हैं. कुमारी कन्या वर की कामना हेतु यह व्रत करती हैं. इसे निराहार किया जाता हैं. माता गौरी को सोलह श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं. हर्ष के साथ संगठित होकर महिलायें एवं कन्या यह त्यौहार मनाती हैं |
नागपञ्चमी – यह शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती हैं. इसमें नाग देवता की पूजा की जाती हैं |
रक्षाबन्धन- श्रावण की पूर्णिमा पर राखी का त्यौहार मनाया जाता हैं. जिसे भाई-बहन का विशेष त्यौहार माना जाता हैं |
श्रावणी मेला – इसे झारखण्ड तरफ मनाया जाता हैं. इसमें पवित्र नदियों के स्नान का महत्व हैं |
कजरी तीज – शुक्ल पक्ष की नवमी में मनाया जाता हैं इसे खासतौर पर किसान एवं महिलाओं द्वारा मनाया जाता हैं. यह विशेषकर मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में मनाया जाता हैं |
श्रावण माह में अन्य रिवाज –
• ऐसे कई त्यौहार मान्यतानुसार श्रावण माह में मनाये जाते हैं. सबका महत्व होता हैं प्रेम और अपनेपन से मिलकर ईश्वर में अपनी आस्था को बनाये रखना |
• कहते हैं श्रावण की पूजा हमेशा परिवार जनों के साथ मिलकर की जानी चाहिये, इससे आपसी मन मुटाव कम होते हैं, और एकता बनी रहती हैं, खुशियाँ आती हैं |
• श्रावण में हिन्दू धर्म में पूजा का बहुत महत्व हैं साथ ही श्रावण में मांसाहार खाना वर्जित माना गया हैं. श्रावण में कई लोग प्याज, लहसुन भी नहीं खाते, कई पुरुष श्रावण में दाड़ी एवं बाल कटवाना गलत मानते हैं |
• श्रावण के महीने में शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों में रथयात्रा निकलती हैं, खासतौर पर यह यात्रा प्रति श्रावणी सोमवार को निकलती हैं, आखरी सोमवार शिव जी की बारात निकाली जाती हैं जिसमे नंदी भी लाये जाते हैं |
• श्रावण के महीने में सुन्दरकाण्ड, रामायण, भागवत कथा का वाचन एवं श्रवण किया जाता हैं, इसे पुण्य का कार्य समझा जाता हैं, इसके अलावा घरो में भजन, शिवाभिषेक एवं सत्यनारायण की कथा की जाती हैं, पूरे महीने दान का भी महत्व होता हैं |
इस तरह से हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा श्रावण माह विशेषरूप से त्योहारों का माह होता है. जिसे लोग बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं |
डॉ. शैलेश कुमार जैमन
व्याख्याता (साहित्य)
राजकीय महाराज आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर